Poudha
मेरी माँ रोती हैं -
वोह पौधा कितना भी सूखा हो,
रंगीन गुलाब कब के बंद,
जिंदा पत्तो का आना भी सालोँ बीते -
पर कांटे मरे नहीं,
आज भी वैसे ही नुकीले
चुभते हैं,
लहू लुहान हाथों से
जब कोशिश करुँ अलग करना
धरती की सुखी कोख से
एक सुखा पौधा
माँ रोती हैं
माँ, चूंकि मां हैं,
पुराने ख्यालों की हैं -
मानना नहीं चाहती
की इस सूखे पौधे के रहने से
aas पास कोई अच्छा पौधा बड़ा नहीं होता ।
जो भी एक आध उगते हैं गलती से,
इस मुर्दे पौधे को देखकर
vimarsh, बीज से सर ही नहीं उठाते -
इस पौधे पर,
माँ मानना ही नहीं चाहती,
कभी वह सफ़ेद गुलाब ab खिलेगा ही नहीं ,
दरअसल जब मैं लहू लुहान हाथों से,
इस पौधे को उठा रहा हूँ
पौधा बिल्कुल ही सूखा
अन्दर से अद्रश्य कीडों से भरा
बेजान
प्रतिरोध के बिना ही
अपनी जड़ों को एक एककर धरती से समेटता
आशाओं के इस प्रहसन से मुक्त हो
निश्चिंत --
पौधे के इस पलायन को dekhkar, समझकर भी
माँ , चूंकि माँ है,
अस्तित्व के इस पेचों को नहीं समझकर
बस, चुपचाप रोती हैं
वोह पौधा कितना भी सूखा हो,
रंगीन गुलाब कब के बंद,
जिंदा पत्तो का आना भी सालोँ बीते -
पर कांटे मरे नहीं,
आज भी वैसे ही नुकीले
चुभते हैं,
लहू लुहान हाथों से
जब कोशिश करुँ अलग करना
धरती की सुखी कोख से
एक सुखा पौधा
माँ रोती हैं
माँ, चूंकि मां हैं,
पुराने ख्यालों की हैं -
मानना नहीं चाहती
की इस सूखे पौधे के रहने से
aas पास कोई अच्छा पौधा बड़ा नहीं होता ।
जो भी एक आध उगते हैं गलती से,
इस मुर्दे पौधे को देखकर
vimarsh, बीज से सर ही नहीं उठाते -
इस पौधे पर,
माँ मानना ही नहीं चाहती,
कभी वह सफ़ेद गुलाब ab खिलेगा ही नहीं ,
दरअसल जब मैं लहू लुहान हाथों से,
इस पौधे को उठा रहा हूँ
पौधा बिल्कुल ही सूखा
अन्दर से अद्रश्य कीडों से भरा
बेजान
प्रतिरोध के बिना ही
अपनी जड़ों को एक एककर धरती से समेटता
आशाओं के इस प्रहसन से मुक्त हो
निश्चिंत --
पौधे के इस पलायन को dekhkar, समझकर भी
माँ , चूंकि माँ है,
अस्तित्व के इस पेचों को नहीं समझकर
बस, चुपचाप रोती हैं
Comments
very deep and sensitive - I must say....