Rishte
कल शाम, नहाने से पहले,
अपनी कमीज़ उतार कर
पास वाली बाल्टी में
फेंकने से पहले ऐसा लगा
कि लोग शायद इसी तरह
पुराने रिश्तों के फ़ेंककर
आंसूओं से नहा धो कर
आशाओं की सुगंधी ओढ़कर
नए रिश्ते पहन लेते होंगे
जिस रिश्ते को कल सवेरे
बड़े चाव से, सोच विचार कर
रंग-वंग मिलाने के बाद
हमने पहना था,
शाम तक
द्वंद्व और संदेह के
पसीने से बेचैन
उसी रिश्ते को उतारकर
अतीत की बाल्टी में फेंकने से पहले
कभी, कोई, किसी रोज़
उस कमीज़ की अनुभूति को सोचेगा?
न, शायद रिश्ते भी इसी तरह
बासी कमीज़ की तरह
बेजान, अनचाहे, फेंके हुए...
अपनी कमीज़ उतार कर
पास वाली बाल्टी में
फेंकने से पहले ऐसा लगा
कि लोग शायद इसी तरह
पुराने रिश्तों के फ़ेंककर
आंसूओं से नहा धो कर
आशाओं की सुगंधी ओढ़कर
नए रिश्ते पहन लेते होंगे
जिस रिश्ते को कल सवेरे
बड़े चाव से, सोच विचार कर
रंग-वंग मिलाने के बाद
हमने पहना था,
शाम तक
द्वंद्व और संदेह के
पसीने से बेचैन
उसी रिश्ते को उतारकर
अतीत की बाल्टी में फेंकने से पहले
कभी, कोई, किसी रोज़
उस कमीज़ की अनुभूति को सोचेगा?
न, शायद रिश्ते भी इसी तरह
बासी कमीज़ की तरह
बेजान, अनचाहे, फेंके हुए...
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