Tyaag
एक दिन
सब कुछ छोड़ दूंगा
आशाएन, निराशाएन,
दस्तकएन, चुप्पियाँ,
शिकायत-एन, मजबूरियां,
रिश्तों का बंधुआपण
आज़ादियाँ
सब कुछ छोड़ कर
निर्वस्त्र
अहम् शास्त्र से भी वंचित
किसी भीड़ भरे बस अड्डे पर
अकेला
तब शायद वोह नन्ही गिलहरी
बे-धड़क
मेरे पांवों की उँगलियों से खेलेगी ;
तब ज़रूर
सूर्य की पहली किरण से
सूर्य की अंतिम किरन तक
ज्ञान, शंका, कारण से रहित
सिर्फ तमाशबीन की नज़रों से
पूरे दिन को, संपूर्ण
देख पाऊँगा
सब कुछ छोड़ दूंगा
आशाएन, निराशाएन,
दस्तकएन, चुप्पियाँ,
शिकायत-एन, मजबूरियां,
रिश्तों का बंधुआपण
आज़ादियाँ
सब कुछ छोड़ कर
निर्वस्त्र
अहम् शास्त्र से भी वंचित
किसी भीड़ भरे बस अड्डे पर
अकेला
तब शायद वोह नन्ही गिलहरी
बे-धड़क
मेरे पांवों की उँगलियों से खेलेगी ;
तब ज़रूर
सूर्य की पहली किरण से
सूर्य की अंतिम किरन तक
ज्ञान, शंका, कारण से रहित
सिर्फ तमाशबीन की नज़रों से
पूरे दिन को, संपूर्ण
देख पाऊँगा
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